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Best Short Motivational Stories in Hindi( लघु प्रेरणादायक कहानियाँ)
लघु प्रेरणादायक कहानियाँ(Short Motivational Stories) समझने में आसान और कम समय में एक सीख ज़रूर दे जाती हैं, जो किसी की भी ज़िन्दगी बदलने की ताक़त रखती हैं। इस भाग में प्रस्तुत हैं ऐसी ही 04 लघु प्रेरणादायक कहानियाँ (04 best Short Motivational Stories in Hindi ) जो आपके लिए प्रेरक का काम करेंगी।
01.बुद्धिमान लड़की Thinking Out of the Box (Creative Thinking)

यह एक इतालवी कहानी है
सैकड़ों वर्ष पहले इटली के एक छोटे से शहर में एक व्यापारी रहता था, उसने शहर के एक बड़े साहूकार से काफ़ी कर्ज़ ले रखा था। साहूकार बहुत ही लालची और मक्क़ार था साथ ही बहुत ही बदसूरत भी था। व्यापारी की एक बेटी थी जो बहुत ही सुन्दर और होशियार थी। साहूकार की बुरी नज़र व्यापारी की बेटी पर थी। वह उससे शादी करना चाहता था। लेकिन वह इतना बदसूरत और बूढ़ा था कि व्यापारी और उसकी बेटी को वह पसन्द नहीं था।
चूंकि साहूकार बहुत ही मक्क़ार था, उसने एक तरक़ीब निकाली और व्यापारी के सामने एक प्रस्ताव रखा कि यदि व्यापारी अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर देता है तो वह उसका पूरा कर्ज़ माफ़ कर देगा, लेकिन व्यापारी नहीं माना।
फिर साहूकार ने एक खेल खेला, उसने व्यापारी और उसकी बेटी के सामने एक और प्रस्ताव रखा उसने कहा तुम्हारे पास कर्ज़ से मुक्त होने का एक और रास्ता है, मैं एक थैले में एक काला और एक सफ़ेद कंकड़ डालूंगा, तुम्हारी बेटी को उसमें से एक कंकड़ निकालना होगा। यदि सफ़ेद कंकड़ निकला तो तुम्हारा सारा कर्ज़ भी माफ़ हो जायेगा और तुम्हारी बेटी को मुझसे शादी भी नहीं करनी पड़ेगी लेकिन यदि काला कंकड़ निकला तो मैं तुम्हारा कर्ज़ तो माफ़ कर दूंगा लेकिन तुम्हारी बेटी को मुझसे शादी करनी पड़ेगी।
यदि तुमने मेरा प्रस्ताव नहीं माना तो तुम्हें अभी मेरा सारा कर्ज़ ब्याज़ सहित चुकाना होगा। मज़बूरन व्यापारी और उसकी बेटी को साहूकार की बात माननी पड़ी।
तीनों व्यापारी के बगीचे में कंकड़ पत्थर वाले रास्ते पर गये वहाँ पर साहूकार ने दो कंकड़ उठाकर थैले में डाल दिए और व्यापारी के बेटी से एक निकालने को कहा। व्यापारी की बेटी ने देख लिया था कि साहूकार ने दोनों ही काले कंकड़ थैले में डाले थे, अब उसके पास तीन विकल्प थे
थैले से कंकड़ लेने से मना कर दे और उसके पिता को साहूकार के अत्याचार का सामना करने को छोड़ दे।
दोनों कंकड़ को थैले से बाहर निकालें और धोखाधड़ी के लिए साहूकार को बेनक़ाब करे।
अच्छी तरह से यह जानते हुए कि दोनों ही कंकड़ काले हैं; अपने पिता की आज़ादी के लिए ख़ुद को बलिदान कर दे।
लेकिन उसने इससे कुछ अलग किया, उसने थैले से एक कंकड़ बाहर निकाला और किसी के देखने से पहले ही नीचे गिरा दिया, वह कंकड़ नीचे पड़े बाक़ी कंकड़ों में मिल गया।
साहूकार बहुत ग़ुस्सा हुआ लेकिन लड़की ने बड़ी विनम्रता से कहा देखिए ये मेरी ग़लती से हुआ है लेकिन अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, आप थैले में देखें तो बाक़ी बचे कंकड़ को देखकर पता चल जायेगा कि मैंंने कौन सा कंकड़ निकाला था। साहूकार को तो पता था कि थैले में अब केवल काला कंकड़ ही था। लड़की की चालाक़ी पर उसे बहुत ग़ुस्सा आया लेकिन क्या करता वह ख़ुद को मक्क़ार साबित नहीं करना चाहता था, शर्त के अनुसार उसे व्यापारी का सारा कर्ज़ माफ़ करना पड़ा और व्यापारी की बेटी को उससे शादी भी नहीं करनी पड़ी।
हमने क्या सीखा:
पूरी कहानी का सारांश यह है कि जब भी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियां आयें कि हमें लगे कि अब कोई विकल्प ही नहीं बचा है तो हमें निर्णय लेने से पहले धैर्य के साथ विचार करना चाहिए कोई न कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा।
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02.हाथी और रस्सी The Elephants with Rope (Belief)

पुराने समय की बात है, एक दिन एक व्यक्ति हाथियों के बाड़े के पास से गुज़र रहा था। उसने देखा कि हाथियों को न तो पिंजरों में रखा गया था और न ही जंज़ीरों से बाँधा गया था बल्कि उन्हें पतली रस्सियों के सहारे बाँधा गया था। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ कि इतने ताक़तवर हाथी इतनी पतली रस्सियों से कैसे बँधे हुए हैं जबकि ये आसानी से इन्हें तोड़कर भाग सकते हैं।
जिज्ञासावश वह व्यक्ति हाथियों की देखभाल करने वाले के पास गया और इस रहस्य के बारे में पूँछा। उस व्यक्ति ने ज़वाब दिया
“जब हाथी बहुत छोटे होते हैं और तब हम उन्हें बाँधने के लिए ऐसी ही आकार की रस्सी का उपयोग करते हैं और उस उम्र में, इतनी रस्सी काफ़ी होती है। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें विश्वास होता है कि वे इस रस्सी को तोड़ नहीं सकते। उनके मन में अभी भी इस रस्सी की पकड़ मज़बूत बनी हुई है, इसलिए वे कभी भी इसे तोड़ने की कोशिश नहीं करते हैं।”
हाथियों के मुक्त होने और भागने के बीच एकमात्र बाधा उनके भीतर का विश्वास था, जो उन्हें बचपन से दिलाया गया था कि वे इस रस्सी को तोड़ नहीं सकते।
हमारे साथ भी कई बार ऐसा ही होता है, बचपन से कुछ ऐसे ही विश्वास और भ्रांतियां हमारे मन-मस्तिष्क में स्थापित कर दिए जाते हैं, जो हमारे बड़े होने के साथ और मज़बूत होते जाते हैं जिन्हें तोड़ना असम्भव लगने लगता हैं और हमारी तरक्क़ी में बाधा बन जाते हैं। बस ज़रूरत है एक बार अपनी ताक़त को पहचानने और अपने काल्पनिक विश्वासों को तोड़कर आगे बढ़ने की फिर हम आज़ाद हैं।
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03.रास्ते का पत्थर The Obstacle In Our Path (Opportunity)

पुराने समय की बात है, एक राजा ने अपनी प्रजा की परीक्षा लेने की सोची। उसने राज्य के मुख्य मार्ग पर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया और वहीं पास ही झाड़ियों में छुप गया, यह देखने के लिये कि लोग उसपर क्या प्रतिक्रिया देते हैं? कुछ ही समय बाद वहां से राज्य के धनी व्यापारी और राजा के दरबारी गुज़रे। उन्होंने उस पत्थर को देखा और इधर-उधर से चले गये।
कुछ और राज्य में रहने वाले लोग वहां से निकले, पत्थर को देखा, किसी ने राज्य के मंत्री को भला-बुरा कहा तो कइयों ने तो अपने राजा को ही राज्य व्यवस्था ठीक से न चला पाने का दोषी ठहरा दिया। और वहाँ से चले गये। राजा यह सब देखकर बड़ा दुखी हुआ।
तभी एक किसान सब्ज़ियों की बोरी अपने सिरपर रखे वहाँ से गुज़रा। उसने रास्ते पर पड़े पत्थर को देखा और सोचा कि पता नहीं यह पत्थर कहाँ से आ गया, लोगों को असुविधा हो रही होगी, इसे हटाना चाहिये। उसने अपनी बोरी सिर से उतार कर किनारे रख दी और पत्थर को हटाने का प्रयास करने लगा लेकिन पत्थर इतना बड़ा था कि किसान के पसीने छूट गये।
किसान ने हार नहीं मानी और काफ़ी देर की मेहनत के बाद पत्थर को रास्ते से हटाने में क़ामयाब हो गया। उसने अपना पसीना पोंछा और सब्जियों की बोरी उठाकर चलने को हुआ तभी उसकी नज़र उस ज़गह पर पड़ी जहाँ पहले वह पत्थर पड़ा हुआ था। उसने देखा वहाँ पर एक अशर्फ़ियों से भरी थैली पड़ी हुई है, किसान ने उठाकर उसे खोला तो देखा थैली के अन्दर एक राजकीय पत्र था जिसमें लिखा हुआ था:-
“मेरे राज्य के सबसे परिश्रमी और दयालु व्यक्ति के लिए, जिसने इस पत्थर को रास्ते से हटाया, उसके राजा की तरफ से छोटी सी भेंट।”
किसान ने ईश्वर और राजा का धन्यवाद कहा और घर की तरफ चला गया।
हमने क्या सीखा:
जीवन में आने वाली हर बाधा अपने साथ एक सुनहरा अवसर लेकर आती है, लेकिन आलसी व्यक्ति जीवनभर शिकायतें ही करता रहता है और अवसरों को गवां देता है, जबकि परिश्रमी अपनी दयालुता और उदारता से बाधाओं में भी अवसर तलाश लेते हैं।
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04.कील के निशान Control Your Temper (Anger)

एक बार की बात है एक छोटा लड़का था जिसका स्वभाव बहुत ही ग़ुस्सैल था। उसके पिता को उसकी इस आदत से काफ़ी परेशानी थी। उसे एक तरक़ीब सूझी। उसने कीलों से भरा एक बैग और लकड़ी का एक पटरा अपने बेटे को दिया और कहा कि जब भी तुम्हें ग़ुस्सा आए तो किसी से भिड़ने की बजाय एक कील इस पटरे पर ठोक देना।
पहले दिन, लड़के ने उस पटरे पर 30 कीलें ठोकी।
लड़का धीरे-धीरे अगले कुछ हफ्तों में अपने स्वभाव को नियंत्रित करने लगा और कीलों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगी।
उसने पाया कि पटरे पर हथौड़े से कील ठोकने की तुलना में अपने स्वभाव को नियंत्रित करना ज़्यादा आसान था।
और अंत में, एक दिन आया जब उसे एक भी कील नहीं ठोकनी पड़ी, ग़ुस्से पर उसने पूरा नियंत्रण पा लिया था। उसने अपने पिता को यह बात बताई। पिता ने कहा कि अब तुम्हें हर उस दिन एक कील पटरे से बाहर निकालनी है, जिस दिन तुम पूरे दिन नियंत्रण में रहते हो।
दिन बीतते गए और आख़िरकार एक दिन उस लड़के ने अपने पिता को बताया कि अब पटरे पर एक भी कील नहीं बची है। पिता ने अपने बेटे को पास बुलाया और उस पटरे को लेकर आने को कहा।
पिता ने बेटे से कहा “तुमने बहुत अच्छा किया जो ख़ुद पर नियंत्रण पा लिया, लेकिन ज़रा इस पटरे की तरफ़ देखो अब यह कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकेगा। जब हम ग़ुस्से में कोई बात कहते हैं, तो हमारी बातें सामने वाले पर इसी तरह से एक निशान छोड़ देती हैं। यदि आप एक आदमी के पेट में एक चाकू डालकर निकाल लेते हैं और इस बात की बार-बार माफ़ी भी मांग लेते हैं, लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि इससे चाकू का घाव नहीं भर सकता।”
हमने क्या सीखा:
अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण रखें, और उत्तेजना में लोगों को ऐसी बातें न बोलें, जिससे आपको बाद में पछतावा हो। जीवन में कुछ चीजें, वापस नहीं लाई जा सकती हैं।
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