Adversity to Opportunity

COVID-19 EVERY ADVERSITY COMES WITH EQUAL OR GREATER OPPORTUNITY

हर आपदा(Adversity) अपने साथ उतने ही बड़े अवसर(Opportunity) लेकर आती है

COVID-19 वैश्विक आपदा(Global Adversity) का प्रभाव हर रोज़ बढ़ता ही जा रहा है दुनियाभर के आँकड़े तेज़ी से बदल रहे हैं और सारी दुनिया इसके प्रभाव में हैं। समाज का हर वर्ग प्रभावित है, कुछ संक्रमण से तो कुछ संक्रमण के डर से। आपदाओं (Adversities)का इतिहास पुराना है, जिसकी चर्चा हम इसके पहले के आलेख में विस्तार से कर चुके है। इतिहास गवाह है कि आपदाएँ केवल नुक़सान नहीं करतीं, कई बार सम्भावनाओं के द्वार भी खोलती हैं।

नेपोलियन हिल का कथन है कि;

Every Adversity Carries with, an equal or Greater Opportunity. 

“हर आपदा अपने साथ उतने ही बड़े अवसर लेकर आती है।“

यह हमारे नज़रिए पर निर्भर करता कि हम परिस्थितियों को कैसे देखते हैं, कैसी प्रतिक्रिया करते हैं?

हर इंसान के भीतर दो तरह के व्यक्तित्व होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। समय और परिस्थिति के अनुसार दोनों व्यक्तित्व उभर कर सामने आते हैं, और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। अब यह हमारी विचार प्रक्रिया और मानसिक दृढ़ता पर निर्भर करता कि हम परिस्थितियों को कैसे देखते हैं।

सकारात्मक सोच हमें मुश्किल समय(Adversity)में भी एक अवसर (Opportunity)तलाशने की सामर्थ्य देती है, जबकि नकारात्मक सोच हमारे सोचने समझने की शक्ति को क्षीण कर देती है, और हमें अवसर(Opportunity) भी समस्या(Adversity) लगने लगते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर हम देखें तो लगभग सारी दुनिया, तालाबंदी के कारण अपने-अपने घरों में है। ऐसे में कई लोग घरों से अपना काम कर रहे हैं। कुछ लोगों के लिए यह मज़बूरी है तो कुछ लोगों के लिए एक नया अनुभव, एक नया अवसर और एक नई सम्भावना।

आज सूचना और प्रौद्योगिकी का दौर है, ऐसे में हम घर बैठे ही बहुत कुछ सकारात्मक कर सकते हैं। नए दोस्त बना सकते हैं, नए व्यापारिक सम्बंध बढ़ा सकते हैं, अपने मौज़ूदा कार्य या व्यवसाय में नई सम्भावनाएं तलाश सकते हैं।

अपने जीवन के शुरुआती दिनों में हम सभी के कुछ न कुछ सपने, रुचियाँ और शौक़ होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं जीवन की मूलभूत ज़रूरतों एवं भविष्य की सुरक्षा के चक्कर में, नौकरी और व्यवसाय के ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं कि हमारे सारे सपने, सारी रुचियाँ, सारे शौक़ धरे के धरे रह जाते हैं। आज जब हम इस आपदा (Adversity) के समय अपने-अपने घरों में हैं, हमारे पास समय ही समय है अपने सपनों को फिर से ज़िंदा करने और पूरा करने की योजना बनाने के लिए और अपनी रुचियों और शौक़ को पूरा करने के लिये।

बंदी और महामारी की इस विभीषिका में ये कहना कि नकारात्मक विचार हमारे भीतर आएंगे ही नहीं, बेमानी सा लगता है लेकिन यह हमारी सोच और मानसिक दृढ़ता पर निर्भर करता है कि हम अपने विचारों पर किसको हावी होने देते हैं, सकारात्मकता को या नकारात्मकता को।

जिस इंसान के व्यक्तित्व में नकारात्मकता का भाव ज़्यादा होगा वह हर स्थिति-परिस्थिति में समस्याओं को देखेगा और परिणामस्वरूप चिंता, भय, अवसाद और तरह-तरह के मानसिक आवेगों का शिकार हो जायेगा। ये मानसिक आवेग व्यक्ति की कार्यक्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं, और सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सम्बंधी समस्यों को मज़बूत करते हैं फलतः व्यक्ति जीवन में असफल हो जाता है।

दूसरी ओर सकारात्मक विचार प्रक्रिया वाला व्यक्ति समस्याओं(Adversity) में भी एक समाधान की तलाश कर लेता है और नये-नये अवसरों(Opportunity) का सृजन कर लेता है। सकारात्मक लोग देर-सबेर सफल ज़रूर होते हैं।

आज की परिस्थिति के संदर्भ में यदि हम बात करें, तो नकारात्मक विचार प्रक्रिया के लोगों को लगता है, कि वे घरों में क़ैद हैं, करने के लिए कुछ बचा नहीं है, उनके लिए जीवन जैसे ख़तम सा हो गया है। सारा दिन टी वी के सामने इस आशा में बैठे रहते हैं कि सरकारें कोई समाधान दे दें और उनका जीवन बच जाय। इस चक्कर में अनजाने में टी वी द्वारा परोसे जा रहे नकारात्मक भावों को अपने दिमाग़ में आने देते हैं फलस्वरूप और ज़्यादा अवसाद, निराशा और हताशा से भर जाते हैं।

चिंता, अवसाद, निराशा और हताशा जैसे मनोविकार हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। निराशावादी सोच रखने वाले लोगों पर नकारात्मक गतिविधियां का ज़ल्दी असर होता है जिससे उनके दिमाग़ के एक ख़ास हिस्से में गतिविधियां तेज़ होती दिखाई देती हैं। इस हलचल के कारण रोगों का मुक़ाबला करने की उनकी क्षमता कमज़ोर हो जाती है। जिस वज़ह से ऐसे लोग अनजाने में ही संक्रमण के लिए ज़्यादा उपयुक्त हो जाते हैं।

मित्रों! समय तेज़ी से बदल रहा है, लोगों के रोज़गारों पर ख़तरा मंडरा रहा है, अब तक करोड़ों लोग बेरोज़गार हो चुके हैं और आने वाले दिनों में ये आँकड़े और भी बढ़ सकते हैं। इस दौरान एक नये तरह का माहौल बन रहा है जो डिज़िटल और सूचनातंत्र पर आधारित है। सारे परम्परागत तरीक़े बंद पड़े हैं चाहे बाज़ार हो या शिक्षण संस्थान, प्राइवेट सेक्टरों में लोग वर्क फ़्रॉम होम कर रहे हैं      

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आगे आने वाले समय में एक नई तरह की बाज़ार प्रणाली और कार्यप्रणाली प्रभाव में आयेगी जो डिज़िटल माध्यमों पर आधारित होगी। तालाबंदी के दौर में बच्चों को डिज़िटल कक्षाओं के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है जिससे वे इसकी ओर ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं, जो परम्परागत शिक्षा व्यवस्था को भी एक तरह से प्रभावित करेगा। वर्क फ़्रॉम होम को कम्पनियाँ एक नए प्रयोग और अवसर(Opportunity) की तरह देख रही हैं जिसके माध्यम से बहुत सारे ख़र्चों से बचा जा सकता है। डिज़िटल मीटिंग्स और ट्रेनिंग्स का प्रचलन बढ़ रहा है जो अपेक्षाकृत आसान और कम ख़र्चीला भी है।

ये सारी बातें एक नकारात्मक व्यक्ति में, जो जीवन में परिवर्तन को स्वीकारना नहीं चाहता, भय और असुरक्षा के भाव पैदा कर सकती हैं लेकिन सकारात्मक व्यक्ति इनमें अवसरों(Opportunity) को तलाश लेगा। परिवर्तन को स्वीकार करते हुए मिले हुए ख़ाली वक़्त में अपनी योग्यता और दक्षता को बढ़ाने का प्रयास करेगा ताकि बदली हुई व्यवस्था में ख़ुद को फिट कर सके।  

आने वाले वक़्त में जब स्थितियाँ सामान्य होंगी तब-तक करोड़ों लोग अपने रोज़गार खो चुके होंगे और आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे होंगे, कम्पनियों के पास विकल्पों के द्वार खुल जायेंगे, और वो ऐसे लोगों को काम पर रखना चाहेंगे जो बदली हुई डिज़िटल व्यवस्था में काम करने में दक्ष होंगे और नई चुनौतियों का सामना करने में समर्थ होंगे। डार्विन के विकासवाद के नियम के अनुसार

   “अंत में वही बचता है जो परिवर्तन को स्वीकार करता है।”   

यदि हम भविष्य में अपने अस्तित्व और रोज़गार को बचाए रखना चाहते हैं तो परिवर्तन को स्वीकारना होगा। ख़ुद को टेक्नोलोज़ी के साथ ताक़तवर बनाना होगा। इस आपदा (Adversity) की घड़ी में भी नए अवसरों (Opportunity) को देखने और अपनाने के लिए तैयार रहना होगा। मित्रों! आज ज़रूरत है अपनी स्वनिर्मित सीमाओं और पूर्वाग्रहों से बाहर निकलकर वक़्त के साथ चलने की, नए अवसरों को तलाशने और स्वीकार करने की। क्योंकि परिवर्तन शाश्वत है इसे स्वीकार करें और एक नए युग के निर्माण में ख़ुद को शामिल करें। यही वक़्त का तकाज़ा है


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