How to Control Your Thoughts and Program Your Mind For Success
जीवन में सफलता की कुंजी हमारी सोच(Thoughts) में छिपी होती है। हमारे विचार और कार्य ही हमारा भविष्य निर्धारित करते हैं। हमारा मन विचारों(Thoughts) की फ़ैक्ट्री है। इसमें हम जिस तरह का कच्चा माल उपलब्ध करवाते हैं, उसी तरह के तैयार उत्पाद हमें प्राप्त होते हैं। सुबह से शाम तक हम जो भी देखते, सुनते और सोचते हैं, वही हम पाते हैं। यदि आप अपने मन के मालिक बनना चाहते हैं, तो आपको अपनी सोच, अपने विचारों को नियंत्रित करना होगा(Control Your Thoughts)। विचारों( Thoughts)पर नियंत्रण के बिना कभी भी आप अपने मन(Mind) के मालिक नहीं बन सकते। योग की परिभाषा में भी कहा गया है:-
“योग: चित्त-वृत्ति निरोध:”
हमारे मन के विचारों(Thoughts) को नियंत्रित करने पर ज़ोर दिया गया है। (Control Your Thoughts)

हमारे मन के दो हिस्से होते हैं:-
- चेतन मन(Conscious Mind)
- अवचेतन मन(Subconscious Mind)
चेतन मन(Conscious Mind) हमारी इच्छा से चलता है। जो भी हम करते हैं, जो भी सोचते हैं, चेतन मन उसी दिशा में कार्य करता है। लेकिन हमारा अवचेतन मन(Subconscious Mind) हमारी इच्छा से नहीं चलता। हम जो भी सोचते हैं, चाहे सकारात्मक या नकारात्मक, सब हमारे अवचेतन मन में संचित होता रहता है। जो घटनाएँ या विचार(Thoughts) हमारे सामने आते हैं, अवचेतन मन में संचित हो जाते हैं और हमारे भविष्य को प्रभावित करते हैं।
अवचेतन मन, चेतन मन की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होता है इसीलिए हमेशा हमें अपने विचारों (Thoughts) पर ध्यान देना चाहिये। क्योंकि अवचेतन मन अच्छे और बुरे का फ़र्क़ करना नहीं जानता, वह हमारे विचारों(Thoughts) को ज्यों का त्यों संचित कर लेता है और उन्हें पूरा करने का काम करता है।
अलादीन के चिराग़ और ज़िन की कहानी तो हम सबने पढ़ी है। अलादीन चिराग़ को रगड़ता है तो उसमें से ज़िन प्रकट होता है। अलादीन जो भी मांगता है, ज़िन कहता है- “आपकी ख़्वाहिश मेरा हुक़्म है मेरे आक़ा!”
हमारा अवचेतन मन भी उसी ज़िन की तरह है, हम जो सोचते हैं, वही पाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जो आप चाहते हैं, वही सोचो और वही बोलो। जो आप नहीं चाहते वह कभी न तो सोचो और न ही बोलो।
हमारे संस्कार और हमारे आस-पास का माहौल हमारे अवचेतन मन पर गहरा असर छोड़ते हैं। ध्यान, प्राणायाम और अपनी विचारवृत्ति पर नियंत्रण(Control Your Thoughts) करके और सकारात्मक माहौल में रहकर अपने अवचेतन मन को व्यवस्थित और मानसिक योग्यता को मज़बूत किया जा सकता है।
शिक्षा(Education) का उद्देश्य डिग्री प्राप्त करके नौकरी प्राप्त करना मात्र नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य हमारे व्यक्तित्व(Personality) का समग्र विकास होना चाहिए, ताकि हम जीवन में आने वाली चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकें।
जीवन में जब हम आगे बढ़ते हैं तब हमारा सामना कई तरह की चुनौतियों(Challenges) और असफलताओं(Failure) से होता है। असफलताओं का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। असफलताएं हमें ख़ुद को सुधारने एवं नए सबक़ सीखने का मौक़ा देती हैं। इसलिए असफलताओं से न तो कभी घबराना चाहिए और न ही निराश होना चाहिए, बल्कि उनसे सबक़(Lesson) लेकर, उनका सदुपयोग करके जीवन पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
थॉमस अल्बा एडीसन जब विद्युत बल्ब का आविष्कार कर रहे थे, तो वे अनेकों बार असफल हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दुनिया को क्या देकर गए? हम सबको पता है। जब एडीसन बल्ब का आविष्कार करने में सफल हो गए तब उनसे पूछा गया कि ‘आप इतनी बार असफल हुए फिर भी आपने प्रयास करना नहीं छोड़ा! इसके पीछे क्या राज़ है?’ एडीसन का ज़वाब हमारे लिए प्रेरणा(Inspiration) हो सकता है। उन्होंने कहा ‘मैं कभी भी असफल नहीं हुआ, बल्कि हर बार मैंने सीखा कि किस तरह से बल्ब नहीं बनाया जा सकता।‘
जीवन में जब भी हम असफल होते हैं तो अपनी असफलता के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराने का प्रयास करते हैं। अपनी असफलता के लिए कभी भी दूसरों पर दोष नहीं मढ़ना चाहिए क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति वह प्राप्त करता है जिसका वह हक़दार है न कि वह जिसकी वह इच्छा करता है।
15 से 25 वर्ष की उम्र व्यक्ति के जीवन में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण(Important) होती है। इस उम्र में ग्रहण(Accept) करने और सीखने(Learn) की अपार क्षमता होती है। और यही जीवन का संक्रमणकाल(Crucial Time) भी होता है। इन महत्वपूर्ण 10 वर्षों में व्यक्ति जो दिशा(Direction) पकड़ लेता है वह उसके भविष्य(Future) की दशा को निर्धारित करता है।
वर्तमान परिदृश्य में अगर देखें तो इसी 15 से 25 के आयुवर्ग में सर्वाधिक मेधावी(Talented) और कुशल(Skilled) तथा सर्वाधिक बिगड़े और अपराधी प्रकृति के युवा समाज में देखने को मिलते हैं। इसलिए इन महत्वपूर्ण 10 वर्षों में जितना ज़्यादा हो सके उतनी अच्छी आदतें(Good Habits) विकसित करने और ज्ञान(Knowledge) प्राप्त करने में अपनी ऊर्जा(Energy) लगानी चाहिए।
इस समय में पाठ्यक्रम(Curriculum) के साथ-साथ मानवीय व्यक्तित्व एवं मनोविज्ञान से सम्बंधित पुस्तकें, अच्छा साहित्य, महापुरुषों की जीवनियाँ तथा अपनी रुचि(Hobby) के किसी ख़ास क्षेत्र से सम्बंधित पुस्तकों का अध्ययन करना एवं जानकारियाँ एकत्र करनी चाहिये।
“अच्छी आदतों के साथ जीना, हमेशा बुरी आदतों के साथ जीने से आसान होता है।”
“हम आदतें बनाते हैं और आदतें हमारा भविष्य।”
उम्र का यह ऐसा दौर होता है जहाँ पर बाहरी दुनिया की चका-चौंध का प्रभाव और आकर्षण सर्वाधिक होता है, ऐसे में बच्चे अक़्सर ग़लत संगत और आदतों का शिकार हो जाते हैं। आज के समय में या तो माता-पिता बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते या बच्चे सब कुछ इस तरह से करते हैं कि पता ही नहीं चल पाता, और जब तक पता चलता है, काफ़ी देर हो चुकी होती है। ऐसे में ज़रूरत है कि बच्चे ख़ुद अपने विवेक से काम लें।
कोई भी क़दम उठाने से पहले विचार करें कि क्या यह सही है? थोड़े से विवेक से काम लेकर ग़लत संगत और आदतों से बचा जा सकता है। फिर भी अगर कोई ग़लत आदत या कमज़ोरी लग ही गई और उसका अहसास हो गया, तो कभी भी उनसे छूटने के लिए अचानक या आमने-सामने का प्रयास न करें। इसके लिए अप्रत्यक्ष(Indirect) और धीरे-धीरे उपाय तलाशने चाहिए। अच्छी आदतों को अपनाने और अच्छे लोगों की संगत करने से बुराइयाँ धीरे-धीरे अपने आप छूट जाती हैं। कहा भी गया है कि-
“जैसी संगत वैसी रंगत।”
अपने भीतर सकारात्मक विचार(Positive Thoughts) भरो(Inculcate), सफल एवं महान लोगों के ऑडियो-वीडिओ सुनो-देखो, अच्छा संगीत सुनो, अच्छे लोगों के साथ रहो और अपनी रुचियों(Hobbies) के क्षेत्र में ख़ुद को व्यस्त रखने की कोशिश करो।
आज के समय में एक और ज़रूरी बात ध्यान रखने की है। आज ज़्यादातर बच्चे मोबाइल और इन्टरनेट में व्यस्त रहते हैं। मैं यह नहीं कहता कि मोबाइल और इन्टरनेट का इस्तेमाल हमेशा ही बुरा है लेकिन यदि यह लत बन जाय तो सारी ऊर्जा(Energy) और रचनात्मकता(Creativity) नष्ट हो जाती है। इसलिए इसका इस्तेमाल बहुत ही बुद्धिमत्ता पूर्वक करना चाहिए।
हमारा मन जितना मज़बूत(Strong) होता है उतना ही संवेदनशील(Sensitive) होता है, इसलिए कभी भी मन को सीधे(Direct) नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी चहिए।
Mind can’t be controlled directly.
इसका बस एक ही उपाय है, अपने भीतर अच्छे विचारों(Thoughts) को भरना और ज़्यादा से ज़्यादा समय सकारात्मक माहौल(Positive Environment) में रहना। यह एक धीमी प्रक्रिया(Slow Process) है, इसमें धैर्य और संयम की ज़रूरत होती है।
अपनी कमज़ोरियों को जानने(Identify) और दूर करने का प्रयास करो।
Result will always be just what is right.
अपनी कमज़ोरियों को पहचानने और दूर करने में अपने बड़ों और शिक्षकों की मदद लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।
ख़ुद पर भरोसा(Confidence) रखो और यह दृढ़ विश्वास रखो कि- फल न तो कभी कम मिलेगा और न ही ज़्यादा, तुम्हारे प्रयासों का उचित फल ज़रूर मिलेगा। हाँ थोड़ा समय लग सकता है।