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Top 6 Common Excuses People make (in Hindi)
हमारा वर्तमान (Present) हमारे पिछले कार्यों (Past) का परिणाम है, हमारा भविष्य (Future) हमारे वर्तमान (Present) पर निर्भर करेगा।
पीछे जो हो गया, हो गया, उसकी चिंता में समय गंवाने का कोई फ़ायदा नहीं। यदि आप अपने भविष्य (Future) को ठीक करना चाहते हैं, तो पिछले (Past) से सबक़ लें और वर्तमान (Present) पर ध्यान केंद्रित करें, ज़रूरी बदलाव (Changes) करें और एक सफल भविष्य (Successful Future) के लिए कमर कस लें।
सफलता (Success) आपके लिए कितनी ज़रूरी चीज़ है, यह तो आपको ही तय करना होगा और उसकी तैयारी भी करनी होगी। क्योंकि सफलता (Success) कभी भी दुर्घटनावश नहीं मिलती, यह एक चरणबद्ध प्रक्रिया है।
सफलता (Success) एक प्रक्रिया है इसके लिए आपको योजना बनाकर काम करना होगा। आपको अपने लिए लक्ष्य(Goal) निर्धारित करने होंगे और उनके लिए काम करना होगा।
जब आप अपने लिए ऊँचे लक्ष्य(Goal) निर्धारित करते हैं, तो यह समझ लेना ज़रूरी होगा कि यह इतना भी आसान नहीं होगा। आपको हर चीज़ की क़ीमत(Price) चुकानी पड़ेगी। पर यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि सफलता (Success) की क़ीमत (Price) हमेशा असफलता (Failure) की क़ीमत (Price) से कम होती है। सफलता की क़ीमत तो आपको कुछ समय के लिए चुकानी पड़ती है लेकिन असफलता की क़ीमत आपको जीवनभर चुकानी पड़ सकती है और हो सकता है आपकी आने वाली पीढ़ियों (Generations) को भी चुकानी पड़े।
इस अंक में हम कुछ ऐसे बिंदुओं पर बात करेंगे जो सफलता(Success) की राह में बड़ी बाधा बन कर सामने आते हैं। इन बाधाओं से कैसे बचा जाय इस पर भी बात करने का प्रयास करेंगे।
हर व्यक्ति के जीवन में एक न एक बार ऐसे अवसर (Opportunities) ज़रूर आते हैं जो आपको सफलता(Success) की राह पर ले जा सकते हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग जाने-अनजाने या तो उन अवसरों को पहचान ही नहीं पाते या फिर नकार देते हैं।
यदि आपने सफलता प्राप्त करने का निर्णय लिया है तो आपको कुछ चीज़ों को पहचानना होगा और उनसे बचना होगा। इस अंक में हम जिस विषय पर बात करेंगे वह है बहानेबाज़ी (Excuses)
जब हम सफल(Successful) होने का निर्णय लेते हैं तो हमें यह बात अच्छे से समझनी होगी कि हमें लोगों की ज़रूरत पड़ेगी। आप कभी भी अकेले दम पर किसी भी क्षेत्र में सफल(Successful) नहीं हो सकते। इसलिए यह ज़रूरी है कि आप लोगों को अच्छे से समझ सकें। अगर आप सफल(Successful) लोगों को ध्यान से देखेंगे तो आप सीख सकते हैं कि ज़िंदगी में सफल(Successful) कैसे हुआ जा सकता है। उनकी सीखों को अपने जीवन में उतार भी सकते हैं।
लोगों का अध्ययन बारीक़ी से करें। जब आप लोगों से बातचीत करेंगे, उनके बारे में अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि असफल लोगों के दिमाग़ में एक भयंकर बीमारी होती है जिसका नाम है बहानेबाज़ी (Excuses)
जब भी जीवन में अवसर हमारे सामने आते है अक़्सर ज़्यादातर लोग बहाने(Excuses) बनाने लग जाते हैं, बहाने(Excuses) कई तरह के होते हैं:-
- पैसों का बहाना-(Money Excuses)
- समय का बहाना-(Time Excuses)
- सेहत का बहाना-(Health Excuse)
- उम्र का बहाना-(Age Excuses)
- शिक्षा का बहाना-(Education Excuses)
- परवरिश और परिवेश का बहाना-(Upbringing and Surroundings Excuses)
आइए एक–एक पर विचार करते हैं:-
पैसों का बहाना-(Money Excuses)
वर्तमान समय में पैसा हर एक व्यक्ति के लिये महत्वपूर्ण है, पैसों के बिना जीवन चलाना लगभग असंभव है|
आपके सामने एक अवसर आता है और आप इसके लिये केवल इसलिए मना कर देते हैं, क्योंकि आपके पास पैसे नहीं हैं| सच पूंछिए तो ये बहाना(Excuses) आप दो कारणों से बनाते हैं, पहला या तो आप पैसे कि अहमियत नहीं जानते या आप अभावों में रहने के आदी हो गए हैं |
सोचने वाली बात तो यह है कि यदि आपके वर्तमान कार्य से आपके पास पर्याप्त पैसे नहीं है इसीलिए तो आपको नए और उपयुक्त अवसर कि तलाश करनी चाहिए ताकि आपके पास पैसे हों|
समय का बहाना-(Time Excuses)
हम बहाने बनाने मे इतने माहिर होते हैं कि कोई न कोई बहाना तलाश ही लेते हैं। समयाभाव का बहाना बहुत ही आम होता है। लोग कहते हैं कि –“मेरे पास तो मरने कि फ़ुरसत नहीं है, मैं कैसे कोई नई शुरुआत कर सकता हूँ?”
अब एक बार शांति से अपने भीतर झांक कर विचार करें कि जो भी काम अब तक आप करते आयें हैं उससे न तो आपके पास पैसे हैं और न ही समय। तो आने वाले दिनों में ऐसा क्या बदल जाएगा? कि आपके पास पैसे और समय दोनों होगा। निश्चित रूप से आप इस प्रश्न के ज़वाब में सकारात्मक हल तो नहीं पाएंगे। अब एक बात और सोचें कि अगर आपके पास पैसा और समय दोनों ही नहीं है तो यह आपकी उपलब्धि है कि समस्या? उत्तर बताने की ज़रूरत नहीं है आपको पता चल ही गया होगा; तो फिर आप किसे प्रभावित करना चाह रहे हैं?
“यदि हम वही काम बार-बार करते हुए, अलग परिणाम की उम्मीद करते हैं तो कम से कम हम बुद्धिमान तो नहीं हो सकते।”
ज़िंदगी में आज जो भी आपके पास है, यदि आप उससे बेहतर करना चाहते हैं तो आपको सारे बहानों को किनारे करके नए अवसरों का स्वागत करना होगा और पूरे उत्साह के साथ काम करना होगा।
उम्र का बहाना -(Age Excuses)
बहुत ही आम और हास्यास्पद बहाना हैं; मेरी तो अब उम्र ही निकल गई या मैं तो अभी बच्चा हूँ। इतिहास में अगर नज़र डालें तो जो भी दुनियाभर में सफल(Successful) लोग हैं उनमें से ज़्यादातर लोगों ने बड़ी उम्र में ही, लगभग 50 साल की उम्र के बाद ही सफलता पाई है।
वर्तमान परिदृश्य में अगर बात करें तो आज 6 साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र के लोग नए-नए कीर्तिमान अर्जित कर रहे हैं।
मुझे एक घटना स्मरण हो रही हैं, एक बार मैं अपने एक मित्र के घर बैठा था तभी उनके एक रिश्तेदार आए, उम्र यही कोई 70 के आप पास थी। बातचीत में पता चला कि वो अपनी कंप्यूटर क्लास से आ रहे थे। मुझे हैरानी हुई और मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया कि बाबूजी अब आपको कंप्यूटर सीखने कि क्या ज़रूरत है? उनका ज़वाब शायद आपके काम आ जाए, उन्होंने कहा- बेटा मैं सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद पाँच विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री पूरी कर चुका हूँ, कई सारी ग़ैरऔपचारिक ट्रैनिंग्स भी ले चुका हूँ और अब कंप्यूटर सीख रहा हूँ। इसकी उन्होंने कई वज़हें बताई
1- यह कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, बस इच्छा-शक्ति होनी चाहिए।
2- उन्होंने कहा जिस दिन आप सीखना बंद कर देते हैं आप वैचारिक रूप से मर जाते हैं |
3- उन्होंने बताया कि पिछले 10-15 वर्षों से मैं ऐसे युवाओं के साथ समय बिता रहा हूँ जिनमें अपार ऊर्जा है, इससे मैं अपने आप को ऊर्जावान बनाए रखता हूँ, साथ ही मेरी ऊर्जा और उत्साह उन युवाओं के लिये भी प्रेरणा का काम करता है, जिनके साथ मैं नई-नई चीज़ें सीखता हूँ। उम्र कोई बहाना नहीं हो सकती यदि आपका उद्देश्य और आप की सोच का दायरा बड़ा हो।
सेहत का बहाना-(Health Excuse)
“मैं क्या करूँ, मेरी तबियत ही ठीक नहीं रहती।” बहानों का यह सबसे आसान और आम स्वरूप है। इसे लोग कई तरह से प्रस्तुत करते हैं, कुछ लोग बिना किसी बीमारी के भी कह देते हैं कि, “मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही।” जबकि कुछ लोग अपनी बीमारी को ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे वह बीमारी पूरी दुनिया में केवल उन्हीं को हुई है।
ख़राब सेहत को लेकर हज़ारों बहाने बनाये जा सकते हैं और यह सिद्ध किया जा सकता है कि अपनी बीमारी के कारण ही व्यक्ति वह नहीं कर पाया जो वह करना चाहता था। लेकिन सच्चाई इसके बिलकुल उलट है।
अपने आसपास नज़र डालें तो हमें अनेकों उदाहरण मिल जाएँगे, जिनके लिए सेहत या शारीरिक कमी केवल एक स्थिति थी न कि एक बहाना। मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस के बारे में तो आपने ज़रूर ही सुना होगा, यदि उन्होंने अपनी सेहत का बहाना बनाया होता तो आज हम उनकी चर्चा नहीं कर रहे होतेेे। अरुणिमा सिन्हा का नाम भी आपने ज़रूर सुना होगा।
हमारा इतिहास और वर्तमान ऐसे हज़ारों उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ लोगों ने अपनी सेहत और शारीरिक कमज़ोरी को अपनी ताक़त बना कर इतिहास रच दिया। याद रखें जब आप अपनी ख़राब सेहत का बख़ान लोगों के सामने करते हैं तो हो सकता है आपको तत्काल लोगों की सहानुभूति मिल जाए, लेकिन आपके पीठ पीछे वही लोग आपका मज़ाक बनाते हैं। ख़राब सेहत का बार-बार बख़ान करने का सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि आप अपने अवचेतन-मन को संदेश देते हैं और आपकी सेहत और ख़राब हो जाती है।
इसलिए ज़रूरी है कि आप अपनी ख़राब सेहत के बारे में कभी बात न करें, हमेशा यह सोचें कि आप पूर्ण स्वस्थ हैं।
अपनी सेहत के बारे में व्यर्थ चिंता न करें, ख़ुद को अच्छे कामों में व्यस्त रखें।
एक पुरानी कहावत ज़रूर सुनी होगी, “मैं अपने फटे जूते देखकर दुखी हो रहा था, परंतु जब मैंने बिना पैरों वाले व्यक्ति को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही।” इसलिए आपकी जैसी भी सेहत है उसके लिए कृतज्ञ बने रहें।
“जंग लगने से अच्छा है घिस जाना।” ईश्वर ने हमें जीवन दिया है जीने के लिए, बहाने बनाकर इसे व्यर्थ बरबाद न करें।
शिक्षा का बहाना-(Education Excuses)
यह बहाना भी सबसे हास्यास्पद बहानों में से एक है।
“मैं ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूँ मैं फलां काम कैसे कर सकता हूँ?” या “इतना पढ़ लिखकर मैं ये काम कैसे कर सकता हूँ?”
मैं शिक्षित होने की मुख़ालफ़त नहीं कर रहा, लेकिन यदि हम दुनियाभर के ज़्यादातर लोगों के जीवन का अध्ययन करें तो पातें हैं कि उन्होंने पढ़ाई तो किसी और क्षेत्र में की थी लेकिन काम अलग क्षेत्र का कर रहे हैं।
दुनियाभर के कामयाब(Successful) लोगों के अध्ययन से पता चलता है कि उनमें से ज़्यादातर तो कभी स्कूल भी नहीं गए, और कुछ लोग अधिकतम हाई स्कूल भी पूरा नहीं कर पाए।
निष्कर्षतः कामयाबी(Success) के लिये औपचारिक शिक्षा का कोई ख़ास महत्व नहीं होता। हाँ एक बात ज़रूर है कि शिक्षा हमें सऊर देती है कि हम अपना अच्छा-बुरा पहचान सकें और अवसरों को पहचान कर उनका लाभ उठा सकें। लेकिन यदि यही शिक्षा हमारे लिये बहाने का काम करे और हमारी प्रगति में बाधा बने तो बेहतर होता है कि हम अशिक्षित ही रह जाते।
परवरिश और परिवेश का बहाना-(Upbringing and Surroundings Excuses)
कई बार हम लोगों को सुनते हैं कि- हमारे तो खानदान में किसी ने यह काम नहीं किया, हम तो ऐसे ही माहौल मे पले-बढ़े हैं, हम दूसरा काम नहीं कर सकते, इत्यादि।
एक छोटी सी कहानी से इस बात को समझते हैं, कि क्या महत्वपूर्ण है, हमारी परवरिश, हमारा परिवेश या हमारा नज़रिया?
एक परिवार में दो बेटे थे, दोनों ही लगभग हम उम्र ही थे। पिता कि छोटी सी दुकान थी, आमदनी का एकमात्र साधन। चार लोगों का परिवार, आमदनी कम, ऊपर से पिता की शराब की लत, सोने पे सुहागा।
पिता रोज़ रात को दुकान से शराब के नशे मे धुत होकर आता और घर में पत्नी और बच्चों के साथ मार-पीट, गाली-गलोज़ करता। दोनों बच्चे इसी माहौल में धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। बड़ा बेटा धीरे-धीरे पिता कि तरह ही लड़ाकू और आक्रामक होता गया। छोटे बेटे को यह सब पसंद नहीं था, वह अपनी माँ से कहा करता कि चलो हम लोग यहाँ से कहीं भाग चलें, क्यों इतने कष्ट सहती हो? लेकिन माँ के लिये यह संभव नहीं था।
छोटा बेटा एक दिन घर छोड़कर भाग गया। समय बीतता गया, बड़ा बेटा अपने बाप की तरह ही शराबी हो गया। दुकान पर जाता लौटकर शराब के नशे में आता और अपने बीवी-बच्चों के साथ वही सब करता जो उसने अपने पिता को बचपन से करते हुए देखा था। माँ और पिता अब इस दुनिया से जा चुके थे। बड़े बेटे ने बाप के संस्कारों को अपना लिया था। अब उसकी स्थिति दिन ब दिन ख़राब होती जा रही थी, लोग उसे समझाने की कोशिश करते थे, कि सुधर जाओ, तो वह उनसे भी झगड़ने लगता।
एक दिन गाँव मे एक कार उसी घर के पास आकार रुकी, एक सम्पन्न परिवार उसमें से उतरा। गाँव वाले कौतूहलवश देखने आ गए कि यह कौन है? उस गाँव का मुखिया उसे पहचान गया, बचपन में दोनों साथ ही पढ़ते-खेलते थे। वह कोई और नहीं उसी परिवार का छोटा बेटा था जो अपने पिता की ज़्यादतियों से ऊबकर भाग गया था। उसने अपने भाई की दयनीय स्थिति देखी तो उसे बहुत बुरा लगा पर वह कर भी क्या सकता था?
थोड़ी देर बाद गाँव के मुखिया ने उससे पूछा कि ‘एक बात बताओ तुम दोनों भाई एक ही माहौल में रह रहे थे, तुम दोनों की परवरिश भी एक तरह ही हुई लेकिन फिर तुम दोनों में इतना अंतर क्यों है?’ छोटे बेटे ने ज़वाब दिया कि, भैया ने पिताजी को अपना आदर्श मान लिया था लेकिन मैं उनकी तरह नहीं बनना चाहता था। मुझे उनके कार्यों से घृणा थी, मैं नहीं चाहता था कि आगे चलकर मेरे बीबी-बच्चे वही सब सहें जो हमने और हमारी माँ ने सहे थे। इसलिए मैं यह सब छोड़कर चला गया था और अपनी सोच और सामर्थ्य से वह सब हासिल किया जो मैं चाहता था।
भाई ने पिताजी का अनुकरण किया और आज वो भी अपनी पसंद कि ज़िंदगी जी रहें हैं।
कहानी का सार इतना सा है कि ज़रूरी नहीं कि आप किस तरह के माहौल में बड़े हुए हैं, ज़रूरी ये है कि परिस्थितियों को आप किस नज़रिए से देखते हैं और क्या चुनाव करते हैं। इसलिए आज ही बहानेबाज़ी से तौबा कर लें, क्योंकि कल कभी नहीं आता।
और अंत में एक मिनट के लिए विचार करें कि कहीं आप भी तो इस बीमारी, बहानेबाज़ी (Excuses) से पीड़ित नहीं हैं? अगर हैं तो अभी इसी वक़्त उपचार शुरू कर दें, क्योंकि सफलता(Success) किसी का इंतज़ार नहीं करती।
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