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COVID-19: History of Epidemics and Socioeconomic Effects महामारियों का इतिहास और आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव
महामारियों (Epidemics)के इतिहास पर एक नज़र डालें तो हम पाते हैं कि महामारियाँ यात्रा करती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचती हैं और प्रसार करती हैं।
महामारियों (Epidemics) की वाहक ग़रीब व आम जनता कभी भी नहीं रही है। आमतौर पर धनी, सम्पन्न, धनोपार्जन एवं तरक़्क़ी पसंद और व्यापारी जो लगातार हवाई एवं समुद्री यात्राएं करते हैं अपने साथ धन के साथ-साथ महामारियों (Epidemics) को भी आयातित कर लाते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ के स्थानीय एवं आमजन सबसे पहले शिकार बनते हैं और धीरे-धीरे वाहक में तब्दील हो जाते हैं।
प्रवासियों में भी जो लोग ग़रीब और श्रमिक होते हैं, जिन्हें प्रायः निम्नतर समझा जाता है, अक्सर पर्यटकों, व्यापारियों, नौकरीपेशा और अभिजात्य वर्ग के सम्पर्क में आकर उनके द्वारा आयातित महामारियों का शिकार बन कर उन्हें फैलाने का ज़रिया बन जाते हैं। ऐसे लोग ज़्यादातर झुग्गियों में, ग़रीब बस्तियों में और सड़कों पर रहने को मज़बूर होते हैं, उच्च और मध्यम वर्ग से अलग लाचार और कमज़ोर होते हैं, इसीलिए उन्हें महामारियों(Epidemics) का ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
जैसे सन् 1817 का “इंडियन कॉलरा”, भारत में, इस बीमारी को वे सैनिक लाये जो प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ने गये थे। 1817 के बाद से, विब्रियो कॉलरा (बैक्टीरिया का एक प्रकार) वैश्विक रूप से हैज़ा की महामारी (Epidemics) का कारण बना। यह आइरिश प्रवासियों के माध्यम से सारी दुनिया में फैला था लेकिन उसके लिये स्थानीय भारतियों को दोषी बताया गया था। यूरोप और अमेरिका में तो कई बार महामारियों(Epidemics) के प्रसार के लिये स्थानीय यहूदी समुदायों को ज़िम्मेदार बताकर दण्डित भी किया जा चुका है।
वर्तमान संदर्भ में Coronavirus या Covid-19 virus के प्रसार को अगर देखें तो यह वायरस हमारे देश में सम्पन्न समूह, व्यापारियों, घूमने के शौक़ीन, विदेशों में पढ़ने वाले, नौकरी करने वाले, गायकों एवं पर्यटकों के ज़रिये ही आया है। फिर यहाँ के टैक्सी ड्राइवर, मज़दूरों, दुक़ानदारों और मध्य वर्ग जैसे समूहों तक पहुँच चुका है।
सरल शब्दों में अगर कहें तो महामारियों (Epidemics) का प्रसार हमेशा प्रवासी लोगों, विदेश जाने और घूमने की सामर्थ्य रखने वाले लोगों के द्वारा होता है। इन लोगों का देश की जी डी पी पर प्रभाव तो होता है साथ ही महामारियों (Epidemics) के प्रसार में भी इन्हीं का हाथ होता है। जिसका सबसे ज़्यादा असर उन लोगों पर पड़ता है, जो अपनी दैनिक जीवन की ज़रूरतों को जुटाने में ही परेशान रहते है, और बेचारे और लाचार होते हैं।
दुनिया में जब उपनिवेशों की खोज़ और उनपर साम्राज्य स्थापित करने की लड़ाई शुरू हुई, उपनिवेशवाद के प्रसार के माध्यम से व्यापारिक गतिविधियाँ तेज़ हुईं और लोगों का प्रवास और विस्थापन शुरू हुआ तब पूरी दुनिया में महामारियों(Epidemics) का प्रकोप भी शुरू हुआ। भारत और एशिया के देशों में भी महामारियों (Epidemics) का प्रसार उपनिवेशवाद के विस्तार के बाद ही बढ़ा।
महामारियाँ (Epidemics) दुनिया की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक स्थितियों को बदलने की क्षमता रखती हैं। साथ ही साथ जलवायु एवं पर्यावरण पर भी इनका व्यापक असर पड़ता है।
आइए संक्षेप में विश्व इतिहास की कुछ भयंकर महामारियों(Epidemics) पर एक नज़र डालते हैं।
एंटोइन प्लेग(Antonine Plague165-180 AD)
महामारियों (Epidemics) का इतिहास दूसरी शताब्दी (165 ई.) से मिलता है जब “एंटोइन प्लेग” नामक महामारी पश्चिम एशिया से युद्ध करके लौटे सैनिकों के ज़रिए रोम पहुँची और एशिया, मिस्र, यूनान और इटली को सर्वाधिक प्रभावित किया। उस समय इस आपदा ने लगभग 50 लाख लोगों की जानें ली थी।
जस्टिनियन प्लेग ( Plague of Justinian 541-542 AD)
ईस्वी सन् 541-542 के बीच “जस्टिनियन प्लेग” नामक महामारी चीन से शुरू होकर मालवाहक जहाज़ों के ज़रिए पूर्वी मेडिटेरिनियन और कांसटेंटीनोपल शहर पहुँची और लगभग 40 प्रतिशत आबादी हमेशा-हमेशा के लिए काल के गाल में समा गई। ऐसा माना जाता है कि समूचे यूरोप में 2.5 करोड़ लोगों की जानें इस महामारी ने ली थी।
ब्लैक डेथ (The Black Death 1346 – 1353 AD)
14वीं शताब्दी में सन् 1346 से 1353 के बीच “ब्लैक डेथ” नाम का प्लेग यूरोपीय जहाज़ों पर काम करने वाले लोगों और व्यापारियों के ज़रिए जो सुदूर पूर्व एशिया की यात्रा से लौटे थे लगभग पूरी दुनिया में फैल गया था और उसने यूरोप, अफ़्रीका और एशिया में भारी तबाही मचाई थी। एक अनुमान के मुताबिक़ 7.5 से 20 करोड़ के लगभग जानें इस महामारी ने ली थी।
इतिहासकारों का मानना है कि सिफलिस जैसी भयंकर बीमारी भी 15वीं शताब्दी में स्पेनिश ख़ोजी यात्रियों के साथ यूरोप पहुँची थी।
इंडियन कॉलरा (The first Cholera Pandemic 1817–1824AD)
ब्रिटिशकालीन बंगाल में सन् 1817 के आस-पास (The first Cholera Pandemic 1817–1824) कॉलरा भयानक रूप से फैला था जिसे नाम दिया गया “इंडियन कॉलरा”। भारत में, इस बीमारी को वे सैनिक लाये जो प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ने गये थे। 1817 के बाद से, विब्रियो कॉलरा (बैक्टीरिया का एक प्रकार) वैश्विक रूप से हैज़ा की महामारी का कारण बना। 5 साल की समयावधि के भीतर, यह वायरस एशिया के कुछ हिस्सों में फैल गया जहां से यह बांग्लादेश और भारत तक पहुंचा। ब्रिटिश सेना की टुकड़ियों के ज़रिए यह बंगाल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक फैला फिर आइरिश प्रवासियों, सैनिकों और व्यापारियों के साथ सारी दुनिया में फैल गया। और भयानक तबाही का कारण बना।
साथियों! ये तो हुई कुछ महामारियों (Epidemics) के इतिहास की बात, आइये अब एक नज़र डालते हैं Coronavirus या Covid-19 virus के बाद दुनियाभर में होने वाले आर्थिक एवं सामाजिक असर पर।
The Socioeconomic Effects of COVID-19
वैश्विक स्तर पर जैसे-जैसे कोरोनोवायरस के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वर्तमान और दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं, कुछ जनसांख्यिकी (Demographics) पर -विशेष रूप से, महिलाओं, युवाओं, प्रवासी श्रमिकों और दुनिया भर के ज़्यादातर कर्मचारियों पर इसका असर पड़ेगा।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट ज़ारी की है जिसमें बताया गया है कि मौज़ूदा महामारी और अलगाव से पूरी दुनिया कितनी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। साथ ही इनसे निपटने के उपायों के बारे में भी इस रेपोर्ट में बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा है कि लैंगिक समानता व महिलाधिकारों के क्षेत्र में पिछले दशकों के दौरान अथक मेहनत से जो प्रगति हासिल की गई है, वो covid-19 महामारी के कारण ख़तरे में पड़ती नज़र आ रही है। इस रिपोर्ट में विवरण दिया गया है कि मौज़ूदा महामारी(Epidemics) के कारण किस तरह पहले से मौज़ूद असमानताएँ और भी ज़्यादा गहरी हो रही हैं।
यूएन ने कहा है कि इस महामारी से वैसे तो हर एक इंसान प्रभावित है लेकिन इसके महिलाओं और लड़कियों पर सबसे ज़्यादा असर हो रहे हैं जो हर क्षेत्र में हैं, स्वास्थ्य से लेकर अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और सामाजिक संरक्षा तक।
“स्वास्थ्य सेवाओं में अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों में लगभग 70 प्रतिशत महिलायें हैं, अवैतनिक कामकाज करने वालों में ज़्यादा संख्या महिलाओं की ही है और सभी देशों में स्थिर विकास में महिलाएँ बहुत महत्वपूर्ण योगदान करने वाली हस्तियाँ हैं।”
“इसलिए हमें सुनिश्चित करना होगा कि महामारी का मुक़ाबला करने के तमाम प्रयासों और निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी हो, यही एक मात्र तरीक़ा है, सभी के लिए बेहतर भविष्य निर्माण का।”
covid-19, पहले से ही कमज़ोर और नाज़ुक विश्व अर्थव्यवस्था को कड़ी टक्कर दे रहा है। 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से 2019 में वैश्विक विकास पहले से ही सबसे धीमा था। covid-19 ने बेरोज़गारी और अभाव के गहरे परिणामों और ऐतिहासिक स्तरों की क्षमता के साथ विश्व अर्थव्यवस्था को मंदी में डाल दिया है।
पूर्णबंदी के माध्यम से रोग के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक उपायों, यात्रा प्रतिबंध और शहरों के तालाबंदी के परिणामस्वरूप मांग और आपूर्ति में उल्लेखनीय कमी आई है। परिवहन, ख़ुदरा व्यापार, पर्यटन व्यवसाय, होटल उद्योग और मनोरंजन के क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है, जिसका असर हमने शेयर बाज़ारों पर देखा है।
विभिन्न आयवर्गों में व्यापक नुक़सान होने की आशंका जताई गई है लेकिन उच्चमध्य आय वाले देशों में यह सबसे ज़्यादा दिखाई दे सकता है, जो वर्ष 2008-09 के वित्तीय संकट के प्रभावों से भी अधिक हो सकता है। वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में बढ़ोत्तरी इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले दिनों में हालात किस तरह करवट बदलते हैं और उनसे निपटने के लिए क्या नीतिगत उपाय अपनाए जाते हैं।
यूएन एजेंसी ने आशंका जताई है कि साल के अंत में ऑंकड़ा ढाई करोड़ बेरोज़गारों के मौज़ूदा अनुमान से कहीं ज़्यादा हो सकता है।
विश्व में कुल कामकाजी लोगों का आंकड़ा तीन अरब 30 करोड़ है और हर पांच में से चार व्यक्ति कामकाज के पूर्ण या आंशिक रूप से बंद होने से प्रभावित हुए हैं।
नए अध्ययन के अनुसार एक अरब 25 करोड़ कर्मचारी ऐसे सैक्टरों में कार्यरत हैं जिनमें व्यापक और विनाशकारी ढंग से लोगों के रोज़गार छिन जाने, कामकाजी घंटों और वेतन में कमी आने की आशंका है। इनमें से अनेक कम वेतन वाले ऐसे रोज़गार हैं जहां कौशल की कम ज़रूरत होती है।
अमेरिका में ऐसे सैक्टरों में जोखिम झेल रहे कर्मचारियों की संख्या 43 फ़ीसदी है जबकि अफ़्रीका में यह आंकड़ा 26 फ़ीसदी है।
कुछ क्षेत्रों में, ख़ासकर अफ़्रीका में, असगंठित श्रमिकों की संख्या ज़्यादा है और सामाजिक संरक्षण का अभाव है, घनी आबादी होने और क्षमता कमज़ोर होने के कारण सरकारों के समक्ष एक बड़ी स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौती पेश हुई है।
विश्व भर में दो अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं जिनमें से अधिकांश उभरती या विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हैं, उन पर जोखिम ज़्यादा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक नई योजना को पेश किया है जिसमें विश्वव्यापी महामारी (Epidemics) COVID-19 के विनाशकारी नतीज़ों से निपटने की रूपरेखा बनाई गई है और निम्न व मध्य आय वाले देशों के लिए एक वैश्विक फ़ंड की स्थापना की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोनावायरस महामारी समाजों की बुनियाद और लोगों की आजीविका के साधनों पर हमला कर रही है, बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बन रही है और मौज़ूदा हालात से वैश्विक अर्थव्यवस्था व देशों पर दूरगामी दुष्प्रभाव होने की आशंका प्रबल हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र की पूरी रिपोर्ट के लिए नीचे लिंक पर जाएँ:-
Source: Shared Responsibility, Global Solidarity: Responding to the socioeconomic impacts of COVID-19
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